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समि॑न्द्र णो॒ मन॑सा नेषि॒ गोभिः॒ सꣳ सू॒रिभि॑र्मघव॒न्त्सꣳ स्व॒स्त्या। सं ब्रह्म॑णा दे॒वकृ॑तं॒ यदस्ति॒ सं दे॒वाना॑ सुम॒तौ य॒ज्ञिया॑ना॒ स्वाहा॑ ॥१५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सम्। इ॒न्द्र॒। नः॒। मन॑सा। ने॒षि॒। गोभिः॑। सम्। सू॒रिभि॒रिति॑ सू॒रिऽभिः॑। म॒घ॒व॒न्निति॑ मघऽवन्। सम्। स्व॒स्त्या। सम्। ब्रह्म॑णा। दे॒वकृ॑त॒मिति॑ दे॒वऽकृ॑तम्। यत्। अस्ति॑। सम्। दे॒वाना॑म्। सु॒म॒ताविति॑ सुऽम॒तौ। य॒ज्ञियाना॑म्। स्वाहा॑ ॥१५॥

यजुर्वेद » अध्याय:8» मन्त्र:15


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर मित्र का कृत्य अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (मघवन्) पूज्य धनयुक्त (इन्द्र) सत्यविद्यादि ऐश्वर्य्य सहित (सम्) सम्यक् पढ़ाने और उपदेश करनेहारे ! आप जिससे (सम्) (मनसा) उत्तम अन्तःकरण से (सम्) अच्छे मार्ग (गोभिः) गोओं वा (सम्) (स्वस्त्या) अच्छे-अच्छे वचनयुक्त सुखरूप व्यवहारों से (सूरिभिः) विद्वानों के साथ (ब्रह्मणा) वेद के विज्ञान वा धन से विद्या और (यत्) जो (यज्ञियानाम्) यज्ञ के पालन करनेवाले को करने योग्य (देवानाम्) विद्वानों की (स्वाहा) सत्य वाणीयुक्त (सुमतौ) श्रेष्ठ बुद्धि में (देवकृतम्) विद्वानों के किये कर्म्म हैं, उसको (स्वाहा) सत्य वाणी से (नः) हम लोगों को (संनेषि) सम्यक् प्रकार से प्राप्त करते हो, इसी से आप हमारे पूज्य हो ॥१५॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ जनों के द्वारा विद्वान् लोग इसलिये सत्कार करने योग्य हैं कि वे बालकों को अपनी शिक्षा से गुणवान् और राजा तथा प्रजा के जनों को ऐश्वर्य्ययुक्त करते हैं ॥१५॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनर्मित्रकृत्यमाह ॥

अन्वय:

(सम्) (इन्द्र) परमैश्वर्ययुक्त गृहपते ! (नः) अस्मान् (मनसा) विज्ञानसहितेनान्तःकरणेन (नेषि) प्राप्नोषि। अत्र बहुलं छन्दसि। (अष्टा०२.४.७३) इति शबभावः। (गोभिः) धेनुभिः सुष्ठुवाग्युक्तैर्व्यवहारैर्वा (सम्) (सूरिभिः) मेधाविभिर्विद्वद्भिरिव (मघवन्) परमपूजितधनयुक्त ! (सम्) (स्वस्त्या) सुखेन (सम्) (ब्रह्मणा) बृहता वेदज्ञानेन धनेन वा, ब्रह्मेति धननामसु पठितम्। (निघं०२.१०)। (देवकृतम्) इन्द्रियकृतं कर्म्म (यत्) (अस्ति) (देवानाम्) आप्तानां विपश्चिताम् (सुमतौ) शोभनायां बुद्धाविव (यज्ञियानाम्) यज्ञस्य पतिं विधातुमर्हाणाम् (स्वाहा) सत्यया वाचा। अयं मन्त्रः (शत०४.४.४.७) व्याख्यातः ॥१५॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मघवन्निन्द्र विद्यादिपरमैश्वर्य्ययुक्त समध्यापकोपदेशक ! यतस्त्वं संमनसा सन्मार्गं गोभिः संस्वस्त्या पुरुषार्थं सूरिभिः सह ब्रह्मणा विद्यां यज्ञियानां देवानां स्वाहा सुमतौ देवकृतं यज्ञकृतं नोऽस्मान् सन्नेषि, तस्माद् भवानस्माभिः सत्कर्त्तव्योऽसि ॥१५॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थैर्विद्वांसोऽतः पूजनीया यतस्ते बालकान् स्वशिक्षया सुगुणयुक्तान् राजप्रजाजनांश्चैश्वर्य्यसहितान् सम्पादयन्ति ॥१५॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थाश्रमी लोकांनी विद्वान लोकांचा यासाठी सत्कार करावा, की ते बालकांना उपदेश देऊन गुणवान करतात व राजा आणि प्रजा यांना ऐश्वर्यवान बनवितात.